Sunday, 28 June 2020
वर्षा ऋतु पर दोहे
वर्षा ऋतु में छा गई, हरियाली चहुँ ओर।
बादल घिरते देख कर, नाचे वन में मोर।।
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घन-घन गरजें बादरा, बरखा छमछम रात।
सूखी धरती फिर सजी, हरियाली सौगात।।
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तपती धरती जल रही, सूख रहे सब पात।
हवा गर्म लू चल रही, जल बिन कछु नहिं भात।।
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बेटा तो परदेस में, अँखियाँ जल बरसात।
बूढ़ी आँखें थक रहीं, दुख की रूई कात।।
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धुआँधार वर्षा हुई, कहीं आ गई बाढ़।
त्रस्त हुआ जीवन सभी, भारी हुआ अषाढ़।।
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बाग़ों में झूले पड़े, रिमझिम है बरसात।
लँहगा, चूड़ी, करधनी, साजन की सौग़ात।
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झुलस गई हैं तितलियाँ, मौसम के आघात।
बादल काले दे गये, आँखों में बरसात।।
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पकी फ़सल पर पड़ गई, ओलों की बरसात।
सहना होगा इस बरस, फाकों का आघात।।
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*** रीता ठाकुर ***
*** अमेरिका ***
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"फ़ायदा"
फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...

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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
सभी सुंदर भावो के दोहे । तीसरे दोहे को और सुंदर किया जा सकता था ।
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