Sunday, 14 June 2020

कहीं से हल निकालेंगे


दिलासे दिल को मिल जायें कहीं से हल निकालेंगे
कपोतों को उड़ा कर ही जिगर का चैन पा लेंगे 


हमीं से मुश्किलें सारी हमीं हैं राहतें सबकी
हमीं लथपथ पसीने से हमीं गंगा नहा लेंगे


नहीं सुनता किसी की आदमी जब भीड़ होता है
अमन की तख़्तियों वाले ही पत्थर भी उछालेंगे


अभी इस बाढ़ में डूबे को तिनके का सहारा है
सियासतदान अपने कीमती आँसू बहा लेंगे


वही हम हैं नहीं जो चूकते मौकापरस्ती में
जिन्हें परवाज़ दी हमने उन्हें पिंजड़ों में डालेंगे


गुनाहों की सज़ाएँ भी मुकर्रर खुद ही रहती हैं
अभी शर्मिंदगी में क्या ख़ुदा से बख़्शवा लेंगे 


किसी तकलीफ़ में ही दिल हमारा पाक रहता है
कबूतर की सहज पाकीज़गी को हम निभा लेंगे


*** मदन प्रकाश सिंह ***

No comments:

Post a Comment

मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत

  हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...