Sunday 28 August 2022

झूठ, अच्छा लगता है

 

नहीं, नहीं रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सत्य जब उजागर होता है तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी सत्य के चौखट पर
लहू लुहान तो नहीं होती
रहने दो मुझे सच का निर्मम चेहरा मत दिखाओ
मुझे तुम्हारा स्निग्ध झूठ बड़ा प्यारा लगता है
जी लेने दो मुझको
बंद पलकों के नशीले झूठ में
सच ये झूठ मुझे सच लगता है
झूठ नहीं
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*** सुशील सरना

Sunday 21 August 2022

"श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन

 



मोहिनी ये मूर्ति प्यारी! मोरपंखी-मोहना।
मोहता है रूप मोहे हे मनोहारी-मना।
मोहिनी डारो नहीं माधुर्य का हे माधवा...
मोहना! मोहे न मोहो मोह ना! हे मोहना॥

गोप-ग्वालों को तजा गोपाल गायों को भुला।
गो-कुलों की ग्वालिनों को त्याग राधा को रुला।
क्यों बसाई द्वारिका क्यों छाँव अद्री की तजा...
छोड़ कान्हा बाँसुरी को क्यों गये झूला झुला?

हूँ सलोने साँवरे श्रीकृष्ण की मैं साँवरी।
प्रीति में आकंठ डूबी जानती ना दाँव री।
दर्श दो गोविंद! आओ नैन प्यासे हैं हरी...
बावरी मीरा बनी मैं छोड़ सारे छाँव री॥

कुन्तल श्रीवास्तव,
डोंबिवली, महाराष्ट्र।

Sunday 14 August 2022

पुष्प मैं भारत चमन का

 

पुष्प मैं भारत चमन का गंध बन कर लहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।

प्रीति परिमल विश्व व्यापे ऐ वतन तेरी महक हो।
भाल पर रज मैं सजाऊँ युद्ध में मन की दहक हो।
लाल पीला नम हरा नीला हरितिमा डाल डाली।
मातु तेरी भोर उज्ज्वल शुभ्र वसना फाग वाली।
हो न वह क्षण जब शहादत में कदाचित्‌ हहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।

केसरी कलियाँ हमारे शौर्य गाथा को सजातीं।
श्वेत पुष्पों में प्रभा सात्विक सुभग धारा बहातीं।
पल्लवों में रँग हरा समृद्धि का द्यौतक हमारा।
नील अंबुज के रँगो में चक्र मंजुल धर्म धारा।
दण्डिका में मैं तिरंगा बन गगन में फहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।

देश में जन जागरण मन पुष्प अर्पण पर्ण वंदन।
भाल ऊँचा विश्वगुरु का पारिजात स्व वर्ण चंदन।
हैं अनुत्तम शौर्य गाथाएं लिखें पण सुनहरे पल।
प्रार्थनाओं में सजे शुचि थाल में हैं कुछ गहे कल।
पंखुड़ी खोलूँ कुसुम हूँ इन्द्रधनु बन छहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ॥

*
हहर / ठिठुरना-काँपना

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 7 August 2022

अनुपमेय जग सारा - एक गीत

 

कण-कण में विलसित सुंदरता, अदभुत रूप सँवारा।

छलक रहा सौंदर्य अनुत्तम, अनुपमेय जग सारा।

दिवस दिवाकर निशा निशापति,
हीरक जटित रश्मियाँ।
मोती तुहिन पुष्प-पल्लव पर,
प्रातः खिलीं लहरियाँ।

हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।
छलक रहा सौंदर्य अनुत्तम, अनुपमेय जग सारा।

डाल-डाल सज गईं मंजरी,
सुरभित है अमराई।
कर्ण मधुर ध्वनि में पिक गाए,
ज्यों बजती शहनाई।

खग कलरव ज्यों वटुक वृंद ने,वैदिक मंत्र उचारा।
छलक रहा सौंदर्य अनुत्तम, अनुपमेय जग सारा।

वृद्धि प्राप्त वन सुषमा रंजित,
पर्ण विटप लतिकायें।
सुभग सरित-तट सिंधु महानद,
आर्द्रिल उपत्यकाएं।

अदभुत मिलन सितासित बहती, पृथक्-पृथक् दो धारा।
छलक रहा सौंदर्य अनुत्तम, अनुपमेय जग सारा।

बना अतुल सौंदर्य सृष्टि का,
कण-कण ईश समाया।
प्राणिमात्र के अमल हृदय को,
निज आवास बनाया।

आत्मभाव सबके प्रति रखना, है सुंदरतम नारा।
छलक रहा सौंदर्य अनुत्तम, अनुपमेय जग सारा।

विशेष: अनुत्तम- सर्वश्रेष्ठ, अप्रतिम

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...