मोहिनी ये मूर्ति प्यारी! मोरपंखी-मोहना।
मोहता है रूप मोहे हे मनोहारी-मना।
मोहिनी डारो नहीं माधुर्य का हे माधवा...
मोहना! मोहे न मोहो मोह ना! हे मोहना॥
गोप-ग्वालों को तजा गोपाल गायों को भुला।
गो-कुलों की ग्वालिनों को त्याग राधा को रुला।
क्यों बसाई द्वारिका क्यों छाँव अद्री की तजा...
छोड़ कान्हा बाँसुरी को क्यों गये झूला झुला?
हूँ सलोने साँवरे श्रीकृष्ण की मैं साँवरी।
प्रीति में आकंठ डूबी जानती ना दाँव री।
दर्श दो गोविंद! आओ नैन प्यासे हैं हरी...
बावरी मीरा बनी मैं छोड़ सारे छाँव री॥
कुन्तल श्रीवास्तव,
डोंबिवली, महाराष्ट्र।
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