पुष्प मैं भारत चमन का गंध बन कर लहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।
प्रीति परिमल विश्व व्यापे ऐ वतन तेरी महक हो।
भाल पर रज मैं सजाऊँ युद्ध में मन की दहक हो।
लाल पीला नम हरा नीला हरितिमा डाल डाली।
मातु तेरी भोर उज्ज्वल शुभ्र वसना फाग वाली।
हो न वह क्षण जब शहादत में कदाचित् हहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।
केसरी कलियाँ हमारे शौर्य गाथा को सजातीं।
श्वेत पुष्पों में प्रभा सात्विक सुभग धारा बहातीं।
पल्लवों में रँग हरा समृद्धि का द्यौतक हमारा।
नील अंबुज के रँगो में चक्र मंजुल धर्म धारा।
दण्डिका में मैं तिरंगा बन गगन में फहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ।
देश में जन जागरण मन पुष्प अर्पण पर्ण वंदन।
भाल ऊँचा विश्वगुरु का पारिजात स्व वर्ण चंदन।
हैं अनुत्तम शौर्य गाथाएं लिखें पण सुनहरे पल।
प्रार्थनाओं में सजे शुचि थाल में हैं कुछ गहे कल।
पंखुड़ी खोलूँ कुसुम हूँ इन्द्रधनु बन छहर जाऊँ।
शूल रोपूँ दुश्मनों के मर्म में जा ठहर जाऊँ॥
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हहर / ठिठुरना-काँपना
*** सुधा अहलुवालिया
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