Sunday 29 August 2021

झूठ - दोहे

 



पायल पहने हाथ में, छमछम नाचे झूठ।
मजबूरी दे तालियाँ, कहीं न जाए रूठ॥
सत्य पड़ा है कैद में, झूठ मंच आसीन।
भोग यहाँ छप्पन मिले, वहाँ चपाती तीन॥
पाॅंव नहीं हैं झूठ के, कहते चतुर सुजान।
गला फाड़ जब चीख़ता, डरता सच नादान॥
कामी क्रोधी लालची, ऋणी चोर ठग शाह।
वैश्या धूर्त गुलाम का, साॅंच झूठ की राह॥
धन कम पद ऊॅंचा रखे, ज्ञान बिना दे बोल।
शास्त्र हीन पंडित बने, खुले झूठ की पोल॥
शोर झूठ को सच करे, मौन साॅंच को झूठ।
सच से जो भयभीत है, उसको खाती मूठ॥
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

Sunday 22 August 2021

हरित शाटिका

 



श्वेत-पीत अरु रक्त पुष्प के, पहन शीश तक गहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

चुपके से दी छेड़ पवन ने,
लहराती सी अलकें।
सकुचाई वसुधा ने खोलीं,
बोझिल होती पलकें।

मन-पुलकन के अंकुर ज्योतित, आभा के क्या कहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

हरियाली चहुँ ओर चमकती
जैसे मरकत चमके।
झिमिर-झिमिर कर बरसे बादल,
दामिनि दम-दम दमके।

रिमझिम की धुन पर मन नाचे, विरह लगा ज्यों दहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

सतत फुहार करे रोमांचित,
भीगा-भीगा मौसम।
अँगड़ाई ले नवल यौवना,
पायल बजती छम-छम।

सपने जगे नई आशा के, लगे हृदय में रहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

*** डॉ राजकुमारी वर्मा ***

Sunday 15 August 2021

घर का न घाट का

 



डबल बेड का हो गया, नया आदमी खाट का,
अंधी दौड़ में आदमी, घर का रहा न घाट का,
चीर हरण अब हो रहा, युग-युग के संस्कार का,
अब गुलाम है आदमी, ठाट-बाट के पाट का।

बदला- बदला वक्त है, बदले-बदले लोग,
जीवन में आनन्द का, मतलब है बस भोग,
घर का रहा न घाट का, धन लोभी इन्सान,
धीरे-धीरे खा रहा, धन का उसको रोग।
*** सुशील सरना ***

Sunday 8 August 2021

 


बहा खुशी का उत्स शुष्क पावन पाहन में।
बरसा घन आनन्द आज सखि है सावन में॥
🌸
छम-छम छम-छम तरु पल्लव पर छमक रही है,
बूँदों की पायलिया छन-छन छनक रही है।
श्यामल मेघों मध्य श्याम छवि झलक रही है,
अधरों पर मुस्कान चपल द्युति लहक रही है।
बरसी रस की धार मधुर ऋतु मनभावन में।
बरसा घन आनन्द आज सखि है सावन में॥1॥
🌸
वन प्रांतर में हर-हर कर पवन झकोर करे,
सखि आनंदित हो नर्तन मन का मोर करे।
घन-घन-घन घहरे मेघ चपल चपला चमके,
नभ में शिव-गौरा लास्य करें कंकण खनके।
सखि! परम आज आनन्द स्रवित मन आँगन में।
बरसा घन आनन्द आज सखि है सावन में॥2॥
🌸
आज प्रकृति के झूले में तन-मन ये झूले,
खुशियों की मन पेंग बढ़ा कर नभ को छू ले।
सखी चलो हम इस बादल में गुम हो जायें,
अम्बर से बस मुट्ठी भर खुशियाँ ले आयें।
आशा की बूँदें बरसायें सबके मन में।
बरसा घन आनन्द आज सखि है सावन में॥3॥
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday 1 August 2021

"रात दिन"

 



सहज से दिल को लेकर रात दिन
चले हैं हम बराबर रात दिन

सबक देती रही ये जिंदगी
हुए हैं सच उजागर रात दिन

उसे ढूंढा नहीं बाहर कभी
कि रब रहता है अंदर रात दिन

असर जारी है अब भी खौफ़ का
दिखे थे ऐसे मंज़र रात दिन

पनाहों में गये हम यादों की
रहा जब वक़्त दूभर रात दिन

समय की साज़िशों में भी यहाँ
मिले रहते परस्पर रात दिन

सनम अब क्या कहें इस हिज़्र में
कटे हैं कैसे अक्सर रात दिन

मदन प्रकाश सिंह

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...