Sunday, 22 August 2021

हरित शाटिका

 



श्वेत-पीत अरु रक्त पुष्प के, पहन शीश तक गहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

चुपके से दी छेड़ पवन ने,
लहराती सी अलकें।
सकुचाई वसुधा ने खोलीं,
बोझिल होती पलकें।

मन-पुलकन के अंकुर ज्योतित, आभा के क्या कहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

हरियाली चहुँ ओर चमकती
जैसे मरकत चमके।
झिमिर-झिमिर कर बरसे बादल,
दामिनि दम-दम दमके।

रिमझिम की धुन पर मन नाचे, विरह लगा ज्यों दहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

सतत फुहार करे रोमांचित,
भीगा-भीगा मौसम।
अँगड़ाई ले नवल यौवना,
पायल बजती छम-छम।

सपने जगे नई आशा के, लगे हृदय में रहने।
कर शृंगार धरा इठलाये, हरित शाटिका पहने।

*** डॉ राजकुमारी वर्मा ***

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