सहज से दिल को लेकर रात दिन
चले हैं हम बराबर रात दिन
सबक देती रही ये जिंदगी
हुए हैं सच उजागर रात दिन
उसे ढूंढा नहीं बाहर कभी
कि रब रहता है अंदर रात दिन
असर जारी है अब भी खौफ़ का
दिखे थे ऐसे मंज़र रात दिन
पनाहों में गये हम यादों की
रहा जब वक़्त दूभर रात दिन
समय की साज़िशों में भी यहाँ
मिले रहते परस्पर रात दिन
सनम अब क्या कहें इस हिज़्र में
कटे हैं कैसे अक्सर रात दिन
मदन प्रकाश सिंह
No comments:
Post a Comment