Sunday, 29 August 2021

झूठ - दोहे

 



पायल पहने हाथ में, छमछम नाचे झूठ।
मजबूरी दे तालियाँ, कहीं न जाए रूठ॥
सत्य पड़ा है कैद में, झूठ मंच आसीन।
भोग यहाँ छप्पन मिले, वहाँ चपाती तीन॥
पाॅंव नहीं हैं झूठ के, कहते चतुर सुजान।
गला फाड़ जब चीख़ता, डरता सच नादान॥
कामी क्रोधी लालची, ऋणी चोर ठग शाह।
वैश्या धूर्त गुलाम का, साॅंच झूठ की राह॥
धन कम पद ऊॅंचा रखे, ज्ञान बिना दे बोल।
शास्त्र हीन पंडित बने, खुले झूठ की पोल॥
शोर झूठ को सच करे, मौन साॅंच को झूठ।
सच से जो भयभीत है, उसको खाती मूठ॥
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

1 comment:

  1. बहुत सुंदर दोहे । छप्पन भोग यहाँ मिले - इस दोहे में लय भंग है । दोहे में तीन त्रिकल एक साथ आने पर लयय भंग होती हौ । इसे - "मिले भोग छप्पन यहाँ" जॉन यचित होगा ।

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