Sunday 27 June 2021

दानव बना दह रहा

 


क्रोध में जीव दानव बना दह रहा। आसुरी वृत्तियाँ प्रति घड़ी गह रहा। भावना में घृणा की नदी जो बही। बात मानी नहीं मर्म ने जो कही। जीव ने व्यर्थ कुंठा जनी कृत्य में। चैन खोया सदा दंभ के नृत्य में। बिन विचारे बिना बात श्रम ढह रहा। आसुरी वृत्तियाँ प्रति घड़ी गह रहा। लाज का चादरा है नहीं नैन पे। है नियंत्रण नहीं कोइ भी बैन पे। दोष में लिप्त मन जो स्पृहा ओढ़ ले। रोग है निज बुना आंतरिक कोढ़ ले। कूप मण्डूप नित वेदना सह रहा। आसुरी वृत्तियाँ प्रति घड़ी गह रहा। राक्षसी कर्म में जो रमा ध्यान है। पाप औ पुण्य का भी नहीं ज्ञान है। जान कर जो निभाते नहीं प्रेम को। जीव पाते नहीं वे कभी क्षेम को। मान की नाव ले लोभ में बह रहा। आसुरी वृत्तियाँ प्रति घड़ी गह रहा। *
सुधा अहलूवालिया

Sunday 20 June 2021

संबल दो

 


प्रिय! भुजापाश को संबल दो,
जिससे‌ प्यार अमर हो जाये।
मेरे भावों को संबल दो,
जिससे गीत मुखर हो जाये।

अरुणोदय का तेज गगन में,
स्वर्णिम प्रभात को जगा गया।
शून्य व्योम के भाल चन्द्रमा,
रक्तिम आभा सजा गया।
रवि के अर्चन को संबल दो,
जिससे धरा सजग हो जाये।

प्रिय! भुजा पाश को संबल दो,
जिससे प्यार अमर हो जाये।

स्पर्श पा कर भुजापाश का,
आनन्द विभोर हुआ अन्तर्मन।
मधुर मिलन के आलिंगन को,
जगा गया बाँहों का संबल।
आनन्दित मन के संबल से,
जीवन आत्ममुग्ध हो जाये।

प्रिय! भुजा पाश को संबल दो,
जिससे प्यार अमर हो जाये।

*** कुसुम शर्मा "उमंग" ***

Sunday 13 June 2021

बदरा

 


उमड़-घुमड़ आये बदरा सखि,
हरषा अवनि संग जियरा सखि।
🌸
नृत्य करें टिप-टिप बुँदियाँ जब,
थिरक उठें बगियन कलियाँ सब,
बाजे रुनझुन स्वर पायलिया,
निरख-निरख हरषें अँखियाँ तब,
***
फूल-फूल पर नाचें भँवरे,
पात-पात झूमे हियरा सखि,
उमड़-घुमड़ आये बदरा सखि।
🌸
रस बरसा के मरुधर झर-झर,
भर देता जब ताल-सरोवर,
झरनों से नदियाँ उर जल भर,
बहतीं कल-कल छल-छल रव कर,
***
रिमझिम-रिमझिम बरस-बरस के,
बूँद-बूँद भर दे अँचरा सखि,
उमड़-घुमड़ आये बदरा सखि।
🌸
सबका तन-मन शीतल कर दे,
ताप सभी हर जिय सुख भर दे,
सुन कजरारे काले मेघा,
निर्मल उज्ज्वल कर अम्बर दे,
***
मन्द सुगंधित पवन झकोरे,
काले कुंतल दें बिखरा सखि,
उमड़-घुमड़ आये बदरा सखि।
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव
डोंबीवलि, महाराष्ट्र

Sunday 6 June 2021

***आस-पास***

 


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दिखती नही ये कौन बला आस-पास है
बाहर न जाइये कि वबा आस-पास है

सांसें नही नसीब हैं आवाम को जहाँ
हुक्काम कह रहे हैं हवा आस-पास है

मौके का फायदा जो उठाने में हैं लगे
भूले न वो सभी कि सज़ा आसपास है

सातों - समुंदरों से मिली है यही ख़बर
हाल एक सा वहाँ जो बुरा आस-पास है

जाता नही गरीब मियाँ अस्पताल में
चुपचाप सोचता है दुआ आस-पास है

ज़िंदा से कह रहे हैं कि सड़कों पे मत निकल
मुर्दा बहा दिया भी गया आस-पास है

सन दो हज़ार बीस में आफत गले पड़ी
इक्कीस तक में आज कज़ा आस-पास है
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आशिक़आनन्द_मोहितआनन्द✍️




रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...