Sunday, 20 June 2021

संबल दो

 


प्रिय! भुजापाश को संबल दो,
जिससे‌ प्यार अमर हो जाये।
मेरे भावों को संबल दो,
जिससे गीत मुखर हो जाये।

अरुणोदय का तेज गगन में,
स्वर्णिम प्रभात को जगा गया।
शून्य व्योम के भाल चन्द्रमा,
रक्तिम आभा सजा गया।
रवि के अर्चन को संबल दो,
जिससे धरा सजग हो जाये।

प्रिय! भुजा पाश को संबल दो,
जिससे प्यार अमर हो जाये।

स्पर्श पा कर भुजापाश का,
आनन्द विभोर हुआ अन्तर्मन।
मधुर मिलन के आलिंगन को,
जगा गया बाँहों का संबल।
आनन्दित मन के संबल से,
जीवन आत्ममुग्ध हो जाये।

प्रिय! भुजा पाश को संबल दो,
जिससे प्यार अमर हो जाये।

*** कुसुम शर्मा "उमंग" ***

No comments:

Post a Comment

मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत

  हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...