Sunday 31 July 2022

बद अच्छा बदनाम बुरा

 

बद शासन का सूत्रधार है, बदनामी तो रंक है।
बद अच्छा बदनाम बुरा का, चिंतन एक कलंक है॥

सज्जनता का लगा मुखौटा, ये नेतालय ढोकते।
बाहर रीति- नीति से चलते, अन्दर कीलें ठोकते॥
बात सदा ही धर्म- कर्म की, करते हैं ये जोर से।
मौका देख निगल जाते हैं, बड़े साॅंप भी मोर से॥

सम्मुख ये मधुरस का झरना, पीछे इनके डंक है।
बद अच्छा बदनाम बुरा का, चिंतन एक कलंक है॥

बदनामी से घृणा जगत को, बद से जग को प्यार है।
बदनीयत को जो पहचाने, उसका बेड़ा पार है॥
शुभचिंतक बन घर में आवे, बातें जाने भेद की।
सम्पर्कों का लाभ उठावे, नस पकड़े फिर खेद की॥

यह मारीच - पूतना युग के, छल को पाले अंक है।
बद अच्छा बदनाम बुरा का, चिंतन एक कलंक है॥

बद को अच्छा कहने वालों, बदनामी तो पीर है।
शरशय्या पर पड़े भीष्म के, सिर के नीचे तीर है॥
धर्मराज -हरिचंद्र -राम को, छला वचन के नाम से।
कृष्णा तारा और अहिल्या, वनवासिन थी धाम से॥

नया वेश धर छिपे यहाँ भी, कालनेमि कुछ कंक है।
बद अच्छा बदनाम बुरा का, चिंतन एक कलंक है॥
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

कंक = राजा विराट का सेनापति और साला, जिसने सैरंध्री द्रोपदी पर कुत्सित दृष्टि डाली और भीम के द्वारा मारा गया।

Sunday 24 July 2022

दो मुक्तक

 


सफर को पूर्ण करने में बहुत कठिनाइयाँ सहते,
मिली मंजिल अगर माफिक मुकम्मल यात्रा कहते,
मगर जब मौत की दस्तक सुनाई साफ देती है,
अधूरापन लिए सबके नयन से अश्रु हैं बहते।
कहोगे पूर्ण किसको तुम जगत में सब अधूरा है,
मृषा जग में तृषा में लिप्त यह तन का तमूरा है,
जहाँ में पूर्ण है केवल नयी शुरुआत का द्योतक,
निकल पाओ अगर भव सिन्धु जीवन चक्र पूरा है।

*** शशि रंजन "समदर्शी"

Sunday 17 July 2022

गुरु प्रसाद

 

गुरु सहज अंतस तमस में दीप धर देता।
दूर कर अवसाद पावन ज्योति भर देता।

तत्व गुरु निर्गुण सगुण चैतन्य धारा है।
प्रेम श्रद्धा आसरा विश्वास सारा है।
गुरु कृपा घन वेदना से दीन क्षर देता।
दूर कर अवसाद पावन ज्योति भर देता।

हो सुसंस्कृत आचरण शुभ खींचता है मन।
जीव हो या पुष्प परिमल सींचता है तन।
ज्ञान निज का गुरु बनें तो जीत वर देता।
दूर कर अवसाद पावन ज्योति भर देता।

अनवरत हम सीखते हैं मानते कम हैं।
है प्रकृति यह सद्गुरू पर जानते कम हैं।
चक्षु करुणा से भरे गुरु धीर स्वर देता।
दूर कर अवसाद पावन ज्योति भर देता।

कृष्ण गीता ज्ञान जीवन सार विस्तृत है।
आचरण श्री राम का प्रति याम चित्रित है।
गुरु स्वजन अवचेतना नवनीत कर देता।
दूर कर अवसाद पावन ज्योति भर देता॥

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 10 July 2022

मधुर मिलन

 

मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।
झरें नेह की बूंद आँख से, भरे हृदय की चादर में।

हरियाली के दृश्य मनोहर, खूब रिझातें पावस में।
झूम-झूम कर कजरी गाते, हास्य बिखेरे आपस में।।
प्यार भरा हो दिल में मानो, भरा समंदर गागर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।

प्राण पगे रस रूप गन्ध में, मुस्काता मन यौवन में।
भरे कुलाचे घूम-घूम कर, मानव मन चन्दन वन में।।
वही सुखद उल्लास बरसता, रिसता प्रेम समादर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।।

कली फूल पर भँवरे डोले, बिछी सेज मृदु फूलों की।
नेह निमंत्रण देता उपवन, बाट जोहते झूलों की।।
राम-भरत सा मधुर मिलन हो, प्रेम परस्पर दादर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।।


*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 3 July 2022

धरा हुई है धानी

 



खेतो में छाई हरियाली, धरा हुई है धानी
उमड़-घुमड़ घन काले छाएरिमझिम बरसे पानी

सपन सँजो कर गोरी बोए, पौधे सँग तकदीरें
पीले हाथों में सजना सँग, होंगी अब तस्वीरें
डोली जाएगी बाबुल के आंगन से जब मेरी
पिया मिलन की बेला में तब, होगी भौर सुहानी
खेतो में छाई हरियाली, धरा हुई है धानी

कर्ज़ मुक्त बापू होगा तो, माँ को चैन मिलेगा
दूर देस भाई पढ़ आए, मन का फ़ूल खिलेगा
अफ़सर बन वो आएगा जब लम्बी सी गाड़ी में
लाएगा भाभी मेरी वो परियों की जो रानी
खेतो में छाई हरियाली, धरा हुई है धानी

अब के बोलूंगी राखी पर बेशक़ कुछ मत देना
माँ की साड़ी पिता की ऐनक एक नहीं दो लेना
इतने से क्यूँ काम चलेगा बोलूंगी भाई को
मुझको भी साइकिल ले देना बेशक नई पुरानी
खेतो में छाई हरियाली, धरा हुई है धानी

सूरजपाल सिंह,
कुरुक्षेत्र।

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...