Sunday, 24 July 2022

दो मुक्तक

 


सफर को पूर्ण करने में बहुत कठिनाइयाँ सहते,
मिली मंजिल अगर माफिक मुकम्मल यात्रा कहते,
मगर जब मौत की दस्तक सुनाई साफ देती है,
अधूरापन लिए सबके नयन से अश्रु हैं बहते।
कहोगे पूर्ण किसको तुम जगत में सब अधूरा है,
मृषा जग में तृषा में लिप्त यह तन का तमूरा है,
जहाँ में पूर्ण है केवल नयी शुरुआत का द्योतक,
निकल पाओ अगर भव सिन्धु जीवन चक्र पूरा है।

*** शशि रंजन "समदर्शी"

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...