मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।
झरें नेह की बूंद आँख से, भरे हृदय की चादर में।।
हरियाली के दृश्य मनोहर, खूब रिझातें पावस में।
झूम-झूम कर कजरी गाते, हास्य बिखेरे आपस में।।
प्यार भरा हो दिल में मानो, भरा समंदर गागर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।।
प्राण पगे रस रूप गन्ध में, मुस्काता मन यौवन में।
भरे कुलाचे घूम-घूम कर, मानव मन चन्दन वन में।।
वही सुखद उल्लास बरसता, रिसता प्रेम समादर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।।
कली फूल पर भँवरे डोले, बिछी सेज मृदु फूलों की।
नेह निमंत्रण देता उपवन, बाट जोहते झूलों की।।
राम-भरत सा मधुर मिलन हो, प्रेम परस्पर दादर में।
मधुर मिलन को आतुर नदियाँ, सदा समाती सागर में।।
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
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