Sunday 24 April 2022

खाली हाथों जाएगा




महल दुमहले भवन अटारी, छोड़ यहीं सब जाएगा।
खाली हाथों आया बन्दे, खाली हाथों जाएगा।

घेर लिया माया ने तुझको, ऐसी तेरी मति फेरी।
जाल बिछाया बाँधा तुझको, भुला अस्मिता दी तेरी।
जरा याद कर लाया था क्या, क्या लेकर के जाएगा।
खाली हाथों आया बन्दे, खाली हाथों जाएगा।

मान किराए का घर इसको, बिना मोह के रहना है।
कब खाली करना पड़ जाए, निश्चित सबका कहना है।
भार नहीं लेना कुछ मन पर, सभी यहीं रह जायेगा।
खाली हाथों आया बन्दे, खाली हाथों जाएगा।

करना है कर्तव्य मात्र बस, रिश्ते मधुर बनाने हैं।
मिले यहाँ फिर सब छूटेंगे, साथ नहीं ये जाने हैं।
रंगमंच पर निभा भूमिका, पुनः विरत हो जाएगा।
खाली हाथों आया बन्दे, खाली हाथों जाएगा।

जीना है आसान जगत में, सरल राह बस चुन ले तू।
मात्र आसरा प्रभु का ले ले, राम नाम मन गुन ले तू।
राम नाम की नाव बैठ भव, सिंधु पार कर जाएगा।
खाली हाथों आया बन्दे, खाली हाथों जाएगा।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा 

Sunday 17 April 2022

दोहा - उपवास

 



मनोयोग से कर लिए, सारे व्रत उपवास।
नैनों में अब भी भरी, पिया मिलन की आस।।

कर्मयोग का व्रत धरा, कार्य नहीं है अल्प।
कर्मठता ने ही किये, पूरे सब संकल्प।।

प्रभु रखना मुझको व्रती, तन -मन हो निष्पाप।
श्वास श्वास होता रहे, राम नाम का जाप।।

सम्पादित सत्कर्म हों, यही करों की चाह।
जीवन भर होता रहे, इस व्रत का निर्वाह।।

प्रभु सुमिरन का रस चखा, सजल रहा उपवास।
तृप्त भयी इस देह में, बची न कोई प्यास।।

*** मदन प्रकाश सिंह

Sunday 10 April 2022

दोहे (कभी-कभी)

 



कभी कभी बदनामियाँ, कर देती हैं नाम।
कभी कभी तनहाइयाँ, देती हैं आराम।।

कभी कभी मदहोशियाँ, ले लेती हैं जान।
कभी कभी रुसवाइयाँ, छीनें हर मुस्कान।।

कभी कभी अठखेलियाँ, आ जाती हैं याद।
कभी कभी गुस्ताखियाँ, कर दें सब बर्बाद।।

कभी कभी चालाकियाँ, कर देतीं नुक्सान।
कभी कभी मन-मर्जियाँ, कम कर दें सम्मान।।

कभी कभी बदमाशियाँ, छेड़ें दिल के तार।
कभी कभी नादानियाँ, भर दें दिल में प्यार।।

कभी कभी खामोशियाँ, करती हैं आवाज़।
कभी कभी दुश्वारियाँ, कर देतीं नाराज़।।

कभी कभी चिंगारियाँ, भड़काती हैं आग।
कभी कभी मजबूरियाँ, लगवा देतीं दाग।।

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गुरचरन मेहता 'रजत'

Sunday 3 April 2022

छंद - राग (वार्णिक 13 मात्रा)





(पिंगल सूत्र - र ज र ज ग)

कामदेव ले रहे हिलोल झील में।
चाह चाशनी मिठास घोल झील में।
चंचु चूम प्रेम रास रंग में डुबा।
हंस हंसिनी करे किलोल झील में।।

शांत नील नीर की विभा विमोहिनी।
श्वेत युग्म हंस प्रीत मग्न मोदिनी।
हो गया विभोर देख दिव्य दृश्य मैं।
मुक्ति दे प्रमाद से प्रिया प्रबोधिनी।।

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शशि रंजन 'समदर्शी' 

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...