मनोयोग से कर लिए, सारे व्रत उपवास।
नैनों में अब भी भरी, पिया मिलन की आस।।
कर्मयोग का व्रत धरा, कार्य नहीं है अल्प।
कर्मठता ने ही किये, पूरे सब संकल्प।।
प्रभु रखना मुझको व्रती, तन -मन हो निष्पाप।
श्वास श्वास होता रहे, राम नाम का जाप।।
सम्पादित सत्कर्म हों, यही करों की चाह।
जीवन भर होता रहे, इस व्रत का निर्वाह।।
प्रभु सुमिरन का रस चखा, सजल रहा उपवास।
तृप्त भयी इस देह में, बची न कोई प्यास।।
*** मदन प्रकाश सिंह
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