Sunday 24 September 2023

थके नयन

 

निशा के श्यामल कपोलों पर
साँसों ने अपना आधिपत्य जमा लिया।
झींगुरों की लोरियों ने
अवसाद की अनुभूतियों को सुला दिया।
स्मृतियाँ किसी खिलौने की भाँति
बेबसी के पलों को बहलाने का
प्रयास करने लगीं।

आँखों की मुंडेरों पर
बेबसी की व्यथा तरल हो चली।
आँखों के बन्द करने से कब दिन ढला है।
मुकद्दर का लिखा कब टला है।
मृतक कब पुनर्जीवित हुआ है।
प्रतीक्षा की बेबसी के सभी उपचार
किसी रेत के महल से ढह गए।

थके नयन
विफलता के प्रहारों को सह न सके,
प्रतीक्षा की विफल रात्रि आँखों में कट गई।
बेबसी स्मृति शूलों पर करवटें बदलती रही।
दृगजल कपोल पृष्ठ पर
बेबस पलों की व्यथा लिख गए।

*** सुशील सरना

Sunday 17 September 2023

"युग्म शब्द" - जन्म-मरण (दोहे)

 

जन्म-मरण संसार में, निस-दिन का है काम।
आज जन्म जिसने लिया, कल जाये प्रभु धाम॥1॥

जीव-जन्म बन्धन सदा, मरण क्षणिक है मुक्ति।
जन्म-मरण से मुक्ति की, मानव खोजे युक्ति॥2॥

फल वैसे मिलते उसे, जिसके जैसे कर्म।
मुक्ति मार्ग कैसे मिले, नहीं निभाये धर्म॥3॥

मानवता का धर्म ही, जिसने दिया बिसार।
स्वर्गलोक की कामना, किया न लोकाचार॥4॥

जन्म दिया जिसने तुम्हें, उसे गये थे भूल।
आज मृत्यु के द्वार पर, तुम्हें चुभेंगे शूल॥5॥

शाश्वत जीवन मृत्यु है, शाश्वत यही प्रसंग।
क्षणभंगुर जग जानते, पर न मोह हो भंग॥6॥

मोह-द्वेष का त्याग ही, जीव-मुक्ति आधार।
ईश-चरण अनुरक्ति से, जन्म-मरण उद्धार॥7॥


कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र

Monday 11 September 2023

जन-जन के श्याम बिहारी - एक गीत




चित्त-चोर सब कहें गोपियाँ, जन-जन के श्याम बिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नटखट कान्हा कहे यशोदा, मिट्टी खाकर झुठलाते।
मुँह खुलवाती जब कान्हा से, मुँह में ब्रहमांड दिखाते।।
माखन चोर कहें सब सखियाँ, जाती उनपर बलिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नित्य दही माखन की हाँडी, सखियाँ छीके पर टाँके।
फिर कान्हा की बाँट निहारे, ओट लिए छुपकर झाँके।।
सन्त-पुरोधा जपते कहकर, केशव माधव गिरिधारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

मधुवन में आ कृष्ण-राधिका, जब आकर रास-रचाते।
ब्रह्मा शिव भी भेष बदलकर, उन्हें देख मन हर्षाते।।
जिसे त्रिलोकी नाथ कहे सब, वह चक्र सुदर्शन धारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।। 

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Monday 4 September 2023

फलित साधना ध्यान से - एक गीत

 



शिवसंकल्प लिए अभिमंत्रित, शुद्ध हृदय आह्वान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

श्रेष्ठ सदा ही संस्कृति अपनी
भ्रमित करे मनस्वार्थ है।
प्राणदायिनी मंत्र ऋचाएँ,
पुण्य पंथ परमार्थ है।

भस्मीभूत करें कटुता को, दूर रहें व्यवधान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
चंचल माया के खेमें में
लगी होड़ दिन रात है।
जग व्यापी तृष्णा जो ठहरी,
झरते उल्कापात है।

यज्ञ भस्म से शुद्ध दिगंतर, करिए जन कल्याण से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
प्राच्य अंशु से सुखदा संचित,
योग भोग अविकार हों।
धन धान्य से भरी बखारियाँ,
स्वप्न सभी साकार हों।

पंचभूत से निर्मित काया, हित जीवन अनुदान से ।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...