Sunday, 28 August 2022

झूठ, अच्छा लगता है

 

नहीं, नहीं रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सत्य जब उजागर होता है तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी सत्य के चौखट पर
लहू लुहान तो नहीं होती
रहने दो मुझे सच का निर्मम चेहरा मत दिखाओ
मुझे तुम्हारा स्निग्ध झूठ बड़ा प्यारा लगता है
जी लेने दो मुझको
बंद पलकों के नशीले झूठ में
सच ये झूठ मुझे सच लगता है
झूठ नहीं
---------------------------

*** सुशील सरना

No comments:

Post a Comment

मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत

  हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...