शब्द-अर्थ संयोग गत, भाव-शिल्प मय जान।
निहित अर्थ व्यंजित करे, सुन्दर काव्य महान।।
ज्यों मुख में ताम्बूल रस, दे आनन्द अपार।
वैसे ही रस चर्वणा, श्रेष्ठ काव्य आधार।।
शब्द-अर्थ गत भेद युत, काव्य अलंकृत रूप।
अलंकार द्विगुणित करें, कविता रूप अनूप।।
कथ्य काव्य का प्राण है, ज्यों धरती का शस्य।
निहित काव्य के कथ्य में, लोक मांगलिक लक्ष्य।।
सुरुचि, सुघड़, परिधान सम, कथ्य-जन्य उन्मेष।
शब्द-अर्थ में हो सृजित, मोहक शिल्प विशेष।।
आरोहण-अवरोह में, चलता अविरल गान।
स्वर धारा लय से बहे, लेता कवि जब तान।।
अकस्मात मन गा उठे, होकर भाव विभोर।
सरस मनोहर काव्य दे, भिगो हृदय की कोर।।
डॉ राजकुमारी वर्मा
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