मर्यादा पुरुषोत्तम ने,
जीना हमें सिखाया।
सच्चा जीवन बने त्याग से,
जी कर हमें दिखाया।।
महल त्याग वनवास लिया था,
पितु के वचन निभाए।
पैदल चल कर वन-वन घूमे,
कंद-मूल फल खाए।।
संतों का उद्धार किया था,
दुष्ट सभी थे मारे।
भिलनी के झूठे बेरों को,
सहज भाव स्वीकारे।।
वनवासी जनजाति वर्ग को,
हँस-हँस गले लगाया।
सबके हित में अपना हित है,
अपना धर्म बनाया।।
अपनाएँ आदर्श सभी हम,
स्वर्ग धरा पर आए।
रच कर *रामचरित-मानस* को,
तुलसी ने गुण गाए।।
यही सार है रामायण का,
पढ़, समझो सब भाई।
दृढ़ विश्वास रहे जो मन में,
मिलें हमें रघुराई।।
*** मुरारि पचलंगिया
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