आज रोया जो सुबह उठ के
शहर बारिश में
याद आया है टपकता हुआ
घर बारिश में
जोर से बरसी घटा झूम
उठा गाँव मेरा
डर के छत पर है चढ़ा
तेरा नगर बारिश में
खेत खलिहान तलैया हैं
खड़े सज धज के
नालियाँ घर में घुसी बन
के नहर बारिश में
मोर नाचे हैं मुंडेरों
पे जो गरजे बादल
भूख करती है सड़क रोक
सफ़र बारिश में
भीग कर हमने लिया खूब
ठिठुरने का मजा
बेवजह तुमको है बीमारी
का डर बारिश में
रूप निरखे हैं तलाबों
में निखर के कुदरत
तू ने देखी है तबाही की
खबर बारिश में
बाढ़ से सच में बहुत
ज्यादा है नुकसान इधर
लाभ लेकर भी है तू सूखा
उधर बारिश में
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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