Sunday, 29 November 2020

धरा हुई है लाल क्रोध से

 


धरा हुई है लाल क्रोध से।
मानव के संकीर्ण शोध से।।
 
दोनों ही ध्रुव लगे पिघलने।
महाप्रलय भू चला निगलने।
डाली उसने वक्र दृष्टि अब,
लगा मनुज था जिसको छलने।।
 
जिसे न समझा आत्मबोध से।
धरा हुई है लाल क्रोध से।।1
 
आपस में ही तनातनी है।
जिधर रखो पग नागफनी है।
मानव के इस स्वार्थ सिद्धि में,
पीर धरा की हुई घनी है।।
 
कष्ट बढ़े हैं अनवरोध से।
धरा हुई है लाल क्रोध से।।2
 
पर्यावरण बचाना होगा।
वरना बस पछताना होगा।
आओ मिल संकल्प करें हम,
तब ही कल मुस्काना होगा।।
 
चलो रोंपते भूमि लोध* से
धरा हुई है लाल क्रोध से।।3
 
*लोध - एक पहाड़ी वृक्ष
 
*** भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल ***

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