स्वप्न बुनती रही मैं हृदय हार के।
नैन पथरा गये राह पर प्यार के।
बीतती हैं मिलन की घड़ी आस थी,
रूठती शाम भी ढल रही खास थी,
हूँ बिछाये पलक पाँवड़े द्वार के।
नैन पथरा गये------
जाग रैना बिताऊँ बनी बाँवरी,
रात नागिन डँसे ये चतुर साँवरी,
फूल मुरझा गये साज शृंगार के।
नैन पथरा गये-------
प्रेम उगता नहीं खेत में मानिए
हाट लगते नहीं प्रेम के जानिए
प्रीत हाला अगन की पिलाती रही,
चाँदनी छेड़ती गीत अंगार के।
नैन पथरा गये------
प्रीत पहरू जगे आहटें आ रही,
राह भूला पथिक रात भी जा रही
प्रेम निष्ठुर बिना मान मनुहार के।
नैन पथरा गये-----
स्वप्न बुनती रही मैं हृदय हार के।
नैन पथरा गये राह पर प्यार के।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***
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