Sunday, 8 November 2020

नारी

 


खो गये शब्द कहीं
रही अधूरी कविता मेरी
सहिष्णु बन
पीड़ा झेल रही नारी अभी।
 
ज़िंदगी के आईने में
दिख रही
छटपटाहट उसकी,
हो रहे खोखले रूप
देवी दुर्गा और शक्ति के
कुचल रहा विकृत समाज
उफनती भावनायें उसकी
कट जाते पंख उसके
और जंजीर पड़ती पाँव में
घुट जाती साँसे
कोख में माँ के कभी
है रौंदी जाती कभी
कहीं अधखिली कली।
 
धोखे फरेब मिलते उसे
प्यार के नाम से
बेच दी जाती कहीं
दलदल में
उम्र भर फँसने के लिये
स्वाहा कर दी जाती कहीं
दहेज की आग में
काँप उठती बरबस
असहिष्णुता भी
देख दशा नारी की।
 
*** रेखा जोशी ***

No comments:

Post a Comment

"फ़ायदा"

  फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...