ख़ामोशी वाचाल हुई है,
सन्नाटों का यह संगीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा,
शब्द रहित अनजाना गीत।
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करतल दोनों जुड़े हुए हैं,
वाणी में शामिल है क्रंदन।
मिलने जुलने का क्रम टूटा,
भूल गए हैं सब अभिनंदन।।
भीड़ सदाओं की रब के दर,
भेज रहा निशि दिन है जन जन।
श्याम बचाओ कहता कोई,
सुन पुकार मेरी रघुनंदन।।
हार रही है अब मानवता,
वबा* रही है हर पल जीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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अस्पताल में बिस्तर कम हैं,
हाहाकार मचा है पल पल।
पता नहीं है बेसुध मन को,
ढलक गया कब से है आँचल।।
अफरातफरी के आलम में,
कोई पड़ा हुआ है निश्चल।।
जेब चिकित्सा के ख़र्चों से,
लगे अधमरी सी या घायल।।
अपनों का आना वर्जित है,
कौन निभाए इन से प्रीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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कोई नहीं जानता है यह,
ऐसा हुआ भाग्य क्यों खोटा।
शम्शानों में लाशें इतनी,
पड़ा लकड़ियों का है टोटा।।
मातम को भी लोग न आते,
कर बैठे अपना दिल छोटा।
सीढ़ी कफ़न बेचने वाले,
बना रहे पैसा अब मोटा।।
खोया पिता किसी ने अपना,
और किसी ने मन का मीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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ख़ामोशी वाचाल हुई है,
सन्नाटों का यह संगीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा,
शब्द रहित अनजाना गीत।
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
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