पढ़ सको तो पढ़कर देखो,
जिन्दगी की हर परत,
कोई न कोई कहानी है।
कल्पना की बैसाखियों पर,
यथार्थ की हवेलियों में,
शब्दों की खोलियों में,
दिल के गलियारों में,
टहलती हुई,
कोई न कोई कहानी है।
पत्थरों के बिछौनों पर,
लाल बत्ती के चौराहों पर,
बसों पर लटकी हुई,
रोटी के लिए भटकी हुई,
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज़,
कोई न कोई कहानी है।
सच पढ़ सको तो पढ़कर देखो,
हर बीता पल, हर छूटा मोड़,
आदि से अन्त तक इन्सान,
सिर्फ़
कहानी ही कहानी है।
*** सुशील सरना
No comments:
Post a Comment