Sunday, 14 January 2024

क्या जीवन को पाया है - एक गीत

 

क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है,
जग जंगल में राह भटककर, राम नाम बिसराया है।

गुरु वशिष्ठ में कमियाँ देखी, कालनेमि की सेवा की,
कन्या हरण प्रेम को माना, निन्दा की हथलेवा की,
कहा कंस को नीति विशारद, उद्धव को कोरा ज्ञानी,
धर्म ध्वजा की वाहक गोपी, भरती दिखती हैं पानी।
पापार्जित वैभव को तूने, श्रम अर्जित बतलाया है,
क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है।
रही मित्रता याद कर्ण की, दुर्योधन की चतुराई,
कोटि सुहृद शत बन्धु वधों का, कौन बता आताताई,
विनय कृष्ण की नीति विदुर की, दुनिया में किसने मानी,
आत्ममुग्ध यश लिप्सा रोगी, हो कुपथ्य की खुद ठानी।
समरांगण के बीच रसिक ने, मृत्यु गीत सुनाया है,
क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है।
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
हथलेवा= पाणिग्रहण संस्कार, कन्या का हाथ वर के हाथ में देना।

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