Sunday, 30 July 2023

मत्तगयंद सवैया छंद

 


श्यामल पंकज रूप मनोरम
कुंचित केश सुहाय रहे हैं।
मोर पखा शिर हार गले शुचि
कोटि मनोज लजाय रहे हैं।
भूमि धरे मुरली मन मोहन
माखन खाय गिराय रहे हैं।
आवत देखि यशोमति ऑंगन
कंज यथा मुसकाय रहे हैं।।
*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

No comments:

Post a Comment

सूरज का संदेश

  बेसुध करती रात सयानी, नित्य सँवारे रवि-स्यंदन है। हार न जाना कर्म पथिक तुम, सुख-दुख सत्य चिरंतन है। मत घबराना देख त्रासदी, उम्मीदों से ज...