कुंचित केश सुहाय रहे हैं।
मोर पखा शिर हार गले शुचि
कोटि मनोज लजाय रहे हैं।
भूमि धरे मुरली मन मोहन
माखन खाय गिराय रहे हैं।
आवत देखि यशोमति ऑंगन
कंज यथा मुसकाय रहे हैं।।
*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"
आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...
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