Sunday 6 August 2023

धर्म की विस्मृत कथाएँ - एक गीत

अर्थ देता काम को शुभकामनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

व्यर्थ है श्रुति,शास्त्र के आख्यान सारे
संस्कृति ने सभ्यता के युद्ध हारे
कह रहे प्रक्षिप्त हैं सारी किताबें
अब लिखो तुम दानवों ने देव मारे

लुट गई घर में जगी संवेदनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

राम केवल कल्पना है सत्य मानो
किंतु, रावण के दहन को पाप जानो
हैं असत्य प्रमाण बिखरे पत्थरों के
मौन होकर वक्ष पर अब उदर तानो

राह में हैं रक्तरंजित भावनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

गल्प लगती आज पौराणिक कहानी
ह्रास संस्कृति पर यहाँ छलका न पानी
स्वर्ण लंका में बताओ कौन पापी?
द्वार पर याचक खड़े हैं पाप दानी

लोभ रचता लाभ की सब प्रार्थनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा

सवाई माधोपुर, राज. 

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...