Sunday 8 October 2023

वृद्ध मानसिकता

 

एक बोझिल मन
थका हारा सा बार बार
चला जाता है अतीत में
कुछ गड़े मुर्दे उखाड़ने
कुछ पुरानी यादें ताज़ा करने
कुछ पुरानी बातों को दोहराने
कुछ पुराने फलसफों से
रुबरु होने
ताकि अतीत के झरोखे से
मन की पीड़ा को स्वर देने की
एक मुकम्मल कोशिश की जा सके
हाँ ,यह तो तय है कि इस तरह बोझिल मन की बातें
सुनी जा सकती हैं/समझी जा सकती हैं
और तदनुकूल उपाय किए जा सकते हैं/हाँ यह मेरा अनुभव है कि
बोझिल मन के किसी कोने में दबी कुछ
अपेक्षाएं बार बार
बाहर आने को अकुलाती हैं
वे नहीं चाहतीं है कि
इस आपा धापी में कुछ ऐसा हो जाये जो
आगे के लिए नासूर बन जाये और फिर
भुगतनी परे ताजिंदगी
एक किस्म की कुंठा/एक किस्म की पीड़ा
जिसका इलाज महंगा
होने के साथ साथ
लाईलाज भी हो
क्या वृद्ध मानसिकता इसी को कहते हैं?

*** राजेश कुमार सिन्हा

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...