Sunday, 3 December 2023

प्रेम पगी बगिया में कोई - गीत

 

मधुर मधुर अनुगूँज भरे जो, अनहद छेडे़ तान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

नाच उठे मन सुधबुध खोकर,
रोम-लोम को भेद।
अमिट छाप से सरस करे तन,
मिटा हृदय के खेद।
कातर मन को मिल जाता है, जैसे ये अनुदान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

प्रेम प्रकृति की अनुपम रचना,
मिलन-विरह उद्वेग।
खड़ी वासना कठिन डगर है,
छद्म भरे अतिरेक।
दीन-हीन छल कुटिल कामना, पंथ नहीं आसान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

लता प्रेम की शाख धरे ज्यों,
गाए मन अवधूत।
जोगन काया निर्गुण निर्मल,
भावी व्यथा न भूत।
लिखे प्रगल्भा सजग लेखनी, भ्रमर-सुमन के गान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...