Sunday 24 December 2023

चकोर सवैया

 

सूरज की किरणें धरती पर खेल रहीं अब सागर संग।
ताल-नदी-सरसी जल में उतरा करने रवि शीतल अंग॥
उर्ध्वमुखी किरणें अति हर्षित दीपित पर्वत-वृक्ष-मतंग।
अंचल भूधर का निखरा बिखरा धरती पर स्वर्णिम रंग॥1॥

मौसम के परिवर्तन से चलती रहती यह सृष्टि तरंग।
वृक्ष कलेवर को बदलें तज पल्लव पीत-विवर्णित-भंग॥
फूल खिलें कब रंग-बिरंग सदैव सचेत अनादि अनंग।
रोज चले रुकता न कभी ऋतु-काल नियामक अंग पतंग॥2॥

निर्झर-सी कल-नाद करे बहती सरि की अविराम तरंग।
पर्वत-जंगल से गुजरी हिय वारिधि से अभिसार-उमंग॥
पेड़-नदी-नभ-सूरज से प्रतिबिंबित है सरि रंग-बिरंग।
निर्मल दर्पण-सी सरिता हिय से करती सब मोह असंग॥3॥

*** कुन्तल श्रीवास्तव

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...