Sunday 23 October 2022

दीपोत्सव - दोहे

 

मंगलमय त्योहार यह, रघुवर चरणों प्रीत।
अंत आसुरी वृत्ति का, अच्छाई की जीत।।

वर्ष चतुर्दश बाद जब, लौटे प्रभु निज धाम।
अवधपुरी हर्षित हुई, निरखत छवि अभिराम।।

दीप अवलियाँ सज गईं, उल्लासित संसार।
जगमग वसुधा सिंधु में, ज्योति पुंज जलधार।।

दीप-माल झिलमिल करे, बहती ज्योति तरंग।
पावन पर्व प्रकाश का, मन उत्साह उमंग।।

रात्रि अमावस की तदपि, उजियारा चहुँ ओर।
अँधियारा निर्बल हुआ, चला न उसका जोर।।

घर-घर में मिष्ठान सँग, बने बहुत पकवान।
खील बताशे भोग ले, करते मंगल गान।।

मंगलमयि दीपावली, गणपति लक्ष्मी पूज।
पंचदिवस त्योहार के, अंतिम भाई दूज।।

सभी
बधाई
दे रहे, बाँट रहे उपहार।
शुभाशीष शुभकामना, मिल देते परिवार।।

डॉ. राजकुमारी वर्मा

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...