विजय हमेशा मिलती उसको, जिसको मन में होती आस ।
विजय पताका फहरे उसकी, दृढ़ता से जो करें प्रयास ।।
एकलव्य सी जिसमें दृढ़ता, समझो जीत उसी के द्वार ।
मन में जीते जीत बताते, मन के हारे मानो हार ।।
अगर लक्ष्य कर ले निर्धारित, तभी लक्ष्य पर रहता ध्यान।
अर्जुन जैसी मिले सफलता, बढ़ता जाता तब विश्वास ।।
अपनी करनी पार उतरनी, यहीं सोच खुद करते काम ।
यत्न स्वयं को करें धैर्य रख, वहीं लक्ष्य को दें अंजाम ।।
सर्वश्रेष्ठ देना ही मकसद, नहीं देखता वह परिणाम ।
नहीं भाग्य के रहें भरोसे, करता रहता सतत विकास ।।
शूल बिछे पथ पर जो चलता, बढ़ने को करता संघर्ष ।
जब पहुँचे गंतव्य जगह पर, मन में होता भारी हर्ष ।।
कर्म बोध का भान जिसे हो,कभी न डिगते उसके पाँव ।
जीते जो अपने बल बूते, उसके मन होता उल्लास ।।
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
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