Thursday 23 May 2024

शुरू हुआ कलियुग का काल - एक गीत

द्वापर युग के जाते जाते, शुरू हुआ कलियुग का काल।
झूठ सत्य के शीश चढ़ गया, फँसा परीक्षित उसके जाल।।

बैठ परीक्षित के स्वर्ण मुकुट, कलियुग आया पाँव पसार।
मदिरा पीकर होश गवायें, सज्जन सब दिखते लाचार।।
सदाचार की राह छोड़कर, करता मानव दुर्व्यवहार,
कुल-कलंक विषधर जब उपजे, खूब बजाते रहते गाल।
पाखण्डी सज्जन की पगड़ी, चौराहे पर रहें उछाल।।

मोह जाल में फँसती महिला, व्यभिचारी करते व्यभिचार।
कामुक हो मदमत्त सदा ही, जीवन में करते अँधियार।।
धन-दौलत की बढ़ी प्यास ने, ख़ूब बढ़ाया भृष्टाचार,
अंधकार का युग यह देखो, दया धर्म का हुआ अकाल।
काम-क्रोध मद मोह लोभ में, नैतिकता की गले न दाल।।

रहें भले ही कलियुग में हम, हो सकते इससे आज़ाद।
त्रेता में भी दम्भी रावण, कर सकता जीवन बर्बाद।।
सन्त सरीखे सभी युगों में, जीवन का लेते आनंद,
सत्संगी तो कलियुग में भी, मस्ती में रहते हर हाल।
कलियुग में भी बोध रहे हो, जी सकते ऊँचा कर भाल।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

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