सींच गया माली प्रीतम सँवरिया।
प्रेम बेल बोकर पग पग डगरिया।
महक उठी क्यारी पवनौ दुलारे,
बेच रहा गंधी काँधे कँवरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।
अंग - अंग बहके निबुआ रसीले।
जेवनौ न भावे तुम बिन छबीले।
प्रीत भरी जूठन लगे मनभावन,
षडरस फीको ये लागी बखरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।
नेह लगाकर सावनी अमराई।
डँसन लगी रतियाँ खारी जुन्हाई।
अँगना खड़ी तके, सुधबुध बिसारे
कटे नहीं पलछिन साँझ दुपहरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।
नैन हमारे ये दरश बिन तरसे।
कजरारी अँखिया मेघ जनु बरसे।
सीप बिना मोती, जलधि बिनु वारी,
प्यार भरीं बतियाँ सूनी अटरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।
डॉ प्रेमलता त्रिपाठी
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