Sunday, 7 November 2021

दीपावली

 


लंक विजय कर अवध में, लौटे श्री रघुवीर।
दुष्ट दलन कर के हरी, जनमानस की पीर॥1॥

रघुवर के सम्मान में, सजा अयोध्या धाम।
दीपोत्सव अभिव्यक्ति है, स्वागत है श्री राम॥2॥

नयी फसल का पर्व यह, पहुंचे घर में अन्न।
हंसी खुशी उल्लास है, जन जन हुए प्रसन्न॥3॥

जगमग है अट्टालिका, कुटिया तम का वास।
दीपोत्सव तब ही सफल, हो चहुँ ओर उजास॥4॥

मन का दीप जलाइए, प्रकटें सुंदर भाव।
सबको अपना मानिए, रखिए नहीं दुराव॥5॥

दीपोत्सव पर बांटिए,सबको अपना स्नेह।
मीठी बोली से भरें, सबके मन का गेह॥6॥

कोई नित भूखा रहे, कोई छप्पन भोग।
दीपोत्सव के पर्व पर, कैसा यह संयोग॥7॥

अशोक श्रीवास्तव, प्रयागराज

1 comment:

मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत

  हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...