तुम जो प्रणय गीत बन जाओ
सारा सृजन तुम्हें लिख दूँगा
आकर मिलना प्रेम नगर में
अंतस भवन तुम्हें लिख दूँगा
हम चातक प्यासे सावन के
औ तुम मेघों की शहजादी
तुमने कर घन घोर गर्जना
मधुवन में ज्वाला सुलगा दी
इस प्यासे उजड़े उपवन में
ऋतु वहार बन कर बरसो तो
सच कहता हूंँ इस मौसम में
पावस मिलन तुम्हें लिख दूँगा
सोलह सावन कैसे बीते
तुम अपने अनुभव लिख देना
जो बसंत मैंने देखे हैं
उन सब गीतों को पढ़ लेना
फिर होठों पर बोल सजा कर
साथ अगर मेरे गाओ तो
अरमानों की फुलबगिया के
सारे सुमन तुम्हें लिख दूँगा
ख़ुशबू बनकर बिखर जाओ तो
बाग बाग गुलशन हो जाये
फिर सोलह शृंगार सजाना
गद गद अंतर मन हो जाए
आओ बैठें एक डाल पर
स्वप्न अगर साकार हुए तो
मधुर महकती अमुराई की
पुरवइ पवन तुम्हें लिख दूँगा
हम अनुरोध किए फिरते हैं
तुम कुहू कुहू कू का करती
में प्यासा हूँ जनम जनम से
तुम कहाँ कहाँ ढूंँढा करती
महामिलन को मुखरित करना
ही तकदीर हमारी है तो
सागर एक बार स्वीकारो
सातो वचन तुम्हें लिख दूँगा
*** राधा बल्लभ पाण्डेय सागर
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