Sunday, 8 June 2025

एक गीत - अपनी डफली अपना राग - आधार छंद आल्ह

 

शून्य चेतना अंध चाह में, दौड़ मचाती भागमभाग।
सूझ-बूझ से करें न साझा, अपनी डफली अपना राग।

रहे पृथक जो अपने मद में,
हठधर्मी जिसका व्यवसाय।
मतभेदों का मिथक भरोसा,
बस दुनिया कायम हो जाय।

अंत अनंत विधान जगत का, व्यर्थ न हो संयम परित्याग।
सूझ-बूझ से करें न साझा, अपनी डफली अपना राग।

स्वार्थ विचारों और हितों में ,
रखते अपना ही आलाप
नित्य अलग अफसाने जुड़ते,
द्वंद्व-फंद के करते जाप।

दर्द बनी जो वादी अपनी, खेल हुआ जो खूनी फाग।
सूझ-बूझ से करें न साझा, अपनी डफली अपना राग।

मर मिटने पर सभी उतारू,
नष्ट हुए या हुआ विकास
रही तर्क संगत दुविधायें,
युद्ध-शांति का लगा कयास।

नीति धर्म परिवारी जीवन, सदा रहे जीवन बेदाग।
सूझ-बूझ से करें न साझा, अपनी डफली अपना राग।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

No comments:

Post a Comment

माता का उद्घोष - एक गीत

  आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...