प्रभात था प्रकाशवान सांध्य भी सुरम्य है।
सुकर्म से सुदीप्त काल रात्रि भी सुगम्य है।
विशाल व्योम अंक में छुपा विवान क्लांत हो।
विषाद त्याग सो गया विरक्ति ओढ़ शांत हो।
समिष्टि हेतु सूर्य का प्रवास भी प्रणम्य है।
सुकर्म से सुदीप्त काल रात्रि भी सुगम्य ।
चली सदैव साथ ही पुनीत प्रेम रंजिनी।
ढली उजास त्याग आज संग-संग संगिनी।
पवित्र प्रेम का विशुद्ध रूप भी अगम्य है।
सुकर्म से सुदीप्त काल रात्रि भी सुगम्य।
विवेक से चुना विधान आज शीलवंत ने।
रचा नवीन पृष्ठ एक सृष्टि का अनंत ने।
सुविज्ञ प्राण वान का प्रयाण भी अनम्य है।
सुकर्म से सुदीप्त काल रात्रि भी सुगम्य है।
अर्चना सिंह 'अना'
जयपुर
No comments:
Post a Comment