करें हम दीन दुखियों की मदद सच्ची इबादत है
यही वो नेक जज़्बा है जो इंसानी नफ़ासत है
कभी भूखे को दस्तर-ख़्वान पे खाना खिला देना
ख़ुशी हासिल करोगे जो वही असली इनायत है
जो नंगे तन बदन बच्चे कभी मायूस मिल जाएँ
उन्हें ख़ुशियाँ दिला देना यही सचमुच दियानत है
ग़रीबों की दुआएँ लो उठा कर ख़र्च शादी का
ये प्यारी बेटियाँ सबकी असल में साझी इज़्ज़त है
करम मा'बूद का ’सूरज’ बनाया है हमें लायक
अदल ख़ालिस ख़ुदा करता वही आ’ला अदालत है
*** सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।
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