Sunday, 11 May 2025

साहित्य उदधि - एक गीत

 

बूँद-बूँद रस के विलयन से, यह साहित्य उदधि निखरा है।
ऊँचाई कहती है हँसकर, एक-एक पग सतत धरा है।

सहज साधना और तपस्या, ज्योतित करता है आगत को।
जहाँ स्वयं सिद्धियाँ बिछातीं, अपनी पलके हैं स्वागत को।
सतत साधना हुई प्रतिफलित, सहज शान्ति से हृदय भरा है।
बूँद बूँद रस के विलयन से, यह साहित्य उदधि निखरा है।

नव रस की निधियाँ बिखरी हैं, यति गति छन्द वितान तना है।
छन्द मुक्त भावानुभूति से, छाया उर आनन्द घना है।
गद्य विधान करे आकर्षित, भाषा का सौन्दर्य झरा है।
बूँद बूँद रस के विलयन से, यह साहित्य उदधि निखरा है।

शैशव का मधुरिम पन विहँसा, ली कैशोर्य जनित अँगड़ाई।
साहित्यिक सुषमा से मण्डित, तन ने छटा मनोहर पाई।
सदा जहाँ तरुणाई विलसे, नहीं पहुँचती कभी जरा है।
बूँद बूँद रस के विलयन से, यह साहित्य उदधि निखरा है।

*** सीमा गुप्ता ‘असीम’

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