बार-बार पीठ पे न शत्रु के प्रहार हों
युद्ध एक मात्र ही विकल्प शेष है सुनों
धर्म स्थापना निमित्त यत्न आर-पार हों
शब्द बाण त्याग दें तीर तेग तान लें
शत्रु वातकेतु चाट स्वाद आज जान लें
बीज नाश हो अराति का यही प्रयास हो
शूरवीर देश के निशंक आज ठान लें
भिन्नता न खिन्नता जुदा नहीं विचार हों
बार-बार पीठ पे न शत्रु के प्रहार हों
रक्त निम्नगा बहे सुजान धैर्य धार लें
रोज़ रोज़ की व्यथा लदान ये उतार लें
नस्ल के भविष्य हेतु आज प्राण त्याग दें
ख़त्म हो हिसाब और क्यूँ ज़रा उधार लें
देश प्रेम भावना जगे चलो निसार हों
बार-बार पीठ पे न शत्रु के प्रहार हों
सत्य जीतता सदा यही यकीन धर्म है
देश के लिए जिएं मरें महान कर्म है
लालसा न स्वर्ग की न मोक्ष चाहना हमें
ग्रन्थ ज्ञान है यही , यही पुराण मर्म है
धर्म युद्ध के लिए दहाड़ ज़ोरदार हों
बार-बार पीठ पे न शत्रु के प्रहार हों
सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।
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