कैसी हुई आज वहशत
सकते में आयी निज़ामत
ग़मगीन इंसा हुआ है
हर सिम्त है एक ज़हमत
आतंक फैला रहे जो
उनके दिलों में है नफ़रत
हथियार हाथों में ले कर
लूटें लुटेरे मसर्रत
रखना ज़रा सब्र यारो
हो ख़त्म दिल से न वहदत
इंसानियत का तक़ाज़ा
रहे ज़िन्दगी हर सलामत
रखना ज़रा सब्र 'कुंतल'
बेशक़ बचेगी न दहशत
*** कुन्तल श्रीवास्तव
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