भारत गाँवों में बसता था,
कभी न डूबा रवि गाँवों में,
छायी है तँह काली रात।।
भारत गाँवों में...
जात-पात का चले बवंडर,
होय भावना लहूलुहान।
वात घृणा की साँय-साँय है,
गाँव हो रहे नित सुनसान।
भाग रहे सब गाँव छोड़ कर,
गाँव न खड़कें सूखे पात।
भारत गाँवों में...
फसल उगाती नहीं धरा भी,
प्रकृति ने भी छोड़ा साथ।
भूख मारती चाबुक रह रह,
तंग हुए हैं सबके हाथ।
नहीं सहारा कुछ गावों में,
बहुत बुरे हैं हर हालात।
भारत गाँवों में....
रोज़गार गाँवों में कम हैं,
मज़दूरी पर भी बड़ा सवाल।
एक शहर ही बड़ा आसरा,
अच्छे नहीं शहर के हाल।
इनी - गिनी मज़दूरी पाते,
खाँय अवध नित गीला भात।
भारत गाँवों में...
*** अवधूत कुमार राठौर 'अवध'
No comments:
Post a Comment