आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री।
कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥
है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से,
आज गुंजित गगन है यह , विजय के जयघोष से,
सकल आनन हैं प्रफुल्लित,अमित हिय परितोष से,
स्वागतम् नवरात्रि का है, अमिय मृद मधुकोष से,
ढोल और मृदङ्ग रव से, गूँजते कान्तार री।
कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥1॥
हास्य रस शृंगार पूरित, करुण रस है मातृ में,
वीर रौद्र विभत्स अद्भुत, शांत रस जगधातृ में,
शत्रु संहारक भयानक, आकृति कालरात्रि में,
नवरसों का हृदय में हो, संचरण नवरात्रि में,
दानव दलन की कथा में, रूप हर साकार री।
कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥2॥
शरद की नवरात्रि अनुपम, प्रकृति से शोभन सजी,
द्रुम लताओं से लदे तरु, शाख पुष्पों से गजी,
आज माँ घर आ रही हैं, व्याप्त नव उल्लास है,
नाचते तन गा रहे मन, नेत्र में नव आस है,
दीप तारों के जला कर, कौमुदी तैयार री।
कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥3॥
*** कुन्तल श्रीवास्तव
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