Sunday, 21 September 2025

मौत की बारात निकली, ज़िंदगी हैरान है।

 

मौत की बारात निकली,
ज़िंदगी हैरान है।
घोंसला फिर से किसी का,
बन गया शमशान है।।

उड़ नहीं पाए पखेरू,
पंख उनके जल गए।
उरगारि समझे थे जिसे,
श्येन सारे छल गए।।

आपदा का बाम लेकर,
आ गया शैतान है।

पूछते हैं हाल लेकिन,
बोलने पर वर्जना।
कौन सुनता है यहाँ पर,
मौन की यह गर्जना।।

दर्द का छाया कुहासा,
मन-गली सुनसान है।

फिर से किसी धृतराष्ट्र की,
मर गई संवेदना।
नेपथ्य से वह ध्वंश की,
भर रहा उत्तेजना।।

लुट रहा संसार मेरा,
सो रहा दरबान है।
मौत की बारात निकली,
ज़िंदगी हैरान है।।
चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

No comments:

Post a Comment

न्याय के मंदिर अपावन हो रहे

  न्याय के मंदिर अपावन हो रहे। स्वार्थ-वश वे अस्मिता निज खो रहे। व्यर्थ है इंसाफ़ की उम्मीद अब, सत्य कहने की सजाएँ ढो रहे। न्याय...