अजनबी! कुछ तो रहा है आपसे सम्बन्ध मेरा।
बस रहे जन्मान्तरों से आप हिय में मीत बनकर।
रात्रि गहराती निखरती चाँदनी जब जब धरा पर।
छेड़ती है भारती संगीत वीणा हाथ में धर।
उस अयाचित प्रेम निर्झर में बरसते गीत बनकर।
बस रहे जन्मान्तरों से आप हिय में मीत बनकर।
हंस बनकर हो विचरते इस हृदय के मानसर में।
ढूँढती हूँ आपकी छवि झिलमिली लघुतम लहर में।
वेदना की हर कसक में आप आए प्रीत बनकर।
बस रहे जन्मान्तरों से आप हिय में मीत बनकर।
बन्द नयनों में बसे हो आप ही आराध्य मेरे।
रंग भर जाते मिलन के ओ परम शाश्वत चितेरे।
अजनबी! कुछ तो बता दो हँस रहे क्यों जीत बनकर।
बस रहे जन्मान्तरों से आप हिय में मीत बनकर।
*** सीमा गुप्ता "असीम"
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