जन्म सभी लेते धरती पर,पलते अपनी ही माटी में।
विकसित होते, पढ़ते, बढ़ते, अपनी अपनी परिपाटी में।।
सबकी अभिलाषा होती है, कुछ ऐसा कर जाएँ जग में।
नाम अमर हो जाए उनका, याद सदा रह जाएँ जग में।।
कवि चाहे लेखन से अपने, कालजयी रचना दे जाए।
गायक चाहे सुर से अपने, गायन कुछ अद्भुत कर जाए।।
सैनिक चाहे युद्ध लड़े वह, दुश्मन की छाती चढ़ जाए।
या तो विजय पताका फहरे, या घर लिपट तिरंगा आए।।
मेरी अभिलाषा बस इतनी, काम दूसरों के मैं आऊँ।
हर मुख बस मुस्काता देखूँ, सबके दिल में जगह बनाऊँ।।
मिट्टी में तो सब मिलते हैं, मैं फिर से जीवित रह पाऊँ।
अंग दान कर दूँ सब अपने, औरों को जीवन दे जाऊँ।।
***** अशोक श्रीवास्तव
नाम अमर हो जाए उनका, याद सदा रह जाएँ जग में।।
कवि चाहे लेखन से अपने, कालजयी रचना दे जाए।
गायक चाहे सुर से अपने, गायन कुछ अद्भुत कर जाए।।
सैनिक चाहे युद्ध लड़े वह, दुश्मन की छाती चढ़ जाए।
या तो विजय पताका फहरे, या घर लिपट तिरंगा आए।।
मेरी अभिलाषा बस इतनी, काम दूसरों के मैं आऊँ।
हर मुख बस मुस्काता देखूँ, सबके दिल में जगह बनाऊँ।।
मिट्टी में तो सब मिलते हैं, मैं फिर से जीवित रह पाऊँ।
अंग दान कर दूँ सब अपने, औरों को जीवन दे जाऊँ।।
***** अशोक श्रीवास्तव
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