शारीरिक ताक़त के बल पर, करो न हरगिज़ अत्याचार।
जो भी आया है दुनिया में, सबको जीने का अधिकार।
शक्ति भरोसे पा लो चाहे, धन दौलत सब अपरंपार।
किन्तु दिखाकर ताक़त सुन लो, कभी नहीं पाओगे प्यार।
ताक़त कलम अगर बन जाये, तो बदले भू का इतिहास।
राजनीति के चतुर खिलाड़ी, को भी है इसका अहसास।
शाम दाम छल दण्ड भेद से, फ़तह हुए कितने दरबार।
जिनसे उनकी परम मिताई, बन बैठे वै ही सरदार।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, किस्सा जाने सकल जहान।
किसी किसी को ही बख़्शा है, ईश्वर ने ऐसा वरदान।
सहनशीलता और मृदुलता, हैं बल की असली पहचान।
क्षुद्र मानसिक परसंतापी, को मिलता हरदम अपमान।
तन की ताक़त गौण रही है, बुधि बल का होता सम्मान।
संत विवेकानन्द ज्ञान से, सकल विश्व में बने महान।
ईश्वर ने दी है जो ताक़त, उससे करो लोक कल्याण।
अपने हित से ऊपर उठकर, करो देश का नव निर्माण।
कृष्ण कुमार दूबे
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